Sunday 4 June 2017

भाषा

एक ऐसा शब्द जिसको सुन कर बहुत सारे बोल दिमाग में आ जाते है।
हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, पारसी, कन्नड़, मल्यालम, तेलुगु, तमिल, भोजपुरी, गुजराती इत्यादि।
मगर कभी सोचा मातृ भाषा (mother tongue) कितनी एहमियत रखती है एक बच्चे की ज़िन्दगी में?
          ज़रूरी नहीं कि बच्चों को सिर्फ़ अंग्रेज़ी सिखाया जाए। वो भी एक भाषा है मगर सिर्फ़ अंग्रेजी में बोलना सही नहीं ऐसे में बच्चों का अपनी मातृ भाषा से कोई तालुकात ही नहीं रहता। हाँ, ये बात सही है कि पाठशाला में अंग्रेज़ी बोलना अनिवार्य है मगर घर पर उन बच्चों से माँ बाप को अपने मातृ भाषा में ही बोलना चाहिए।
अक्सर माँ बाप ये भूल जाते है कि उनका बच्चा गलत जा रहा है उनको सुधारने के बजाए वो उन्हें और प्रेरित करते है। खुद अंग्रेज़ी में बोलने लगते है उन्हें रोकने के बदले।
     मैंने देखा है बहुत लोगों को अपने छोटे छोटे बच्चों से अंग्रेज़ी में बात करते हुए ये ग़लत नहीं।जब मैं उन बच्चों से किसी और भाषा में बात कारू तो वो चुप हो जाते है ऐसा लगता है जैसे मुँह पर ताला पड़ गया हो। जब अंग्रेज़ी में मैं वही बात दोहराती हूँ तो जवाब मुझे मिला जाता है। मैंने सोचा ये क्या हो गया है आज की पीढ़ी को?
माँ बाप बहुत ईतराते है कि उनका बच्चा अंग्रेज़ी में बोलता है इतनी छोटी उम्र में मगर वो ये बात भूल गए है कि वो खुद उनके बच्चें को बिगाड़ रहे है। मैं ये नहीं कहती कि अंग्रेज़ी में बात करना ग़लत है मगर अंग्रेज़ी के साथ कोई और भाषा का आना भी उतना ही ज़रूरी है जितना अंग्रेज़ी जानना है।
      मानती हूँ आज कल की पीढ़ी बहुत समझदार हो गयी है लेकिन ऐसी समझदारी किस काम की जिसमें सिर्फ़ अंग्रेज़ी ही भरी पड़ी हो?
कोई बुज़र्ग किसी बच्चे से कोई पता पूछे, तो बच्चा अंग्रेज़ी में बोलता है जो उस बुज़र्ग को समझ आता नहीं और बच्चों को कोई और भाषा का पता है नहीं।
अगर हमारे बड़े समझदार होते तो क्या वो हमसे ज़्यादा पढ़े लिखे ना होते?? हमेशा सिर्फ़ अंग्रेज़ी में बात करने वाला इंसान, विदेशी भी भारत आकर टूटा फूटा ही सही मगर हिंदी बोल लेते है तो हम क्यों नहीं??
जब विदेशी यहाँ आकर हमारी भाषा, संस्कृति को अपना सकते है तो हम क्यों नहीं??
        भाषा बहुत सी हैं दुनिया में मगर हमने सिर्फ़ अंग्रेज़ी को चुना, क्यों?
अगर आपका जवाब ये है कि वो आसान है तो एक भाषा बात दीजिये जो मुश्किल हो। सीखनेवाले के लिए कुछ भी आसान या मुश्किल नहीं होता।
कभी कभी मुझे लगता है कि हिंदी या कोई और भाषा का उपयोग उतना क्यों नहीं जितना अंग्रेज़ी का है? जिसका कोई जवाब आज तक मिला नहीं। ऐसा नहीं है कि माँ बाप को कोई और भाषा आती ही नहीं मगर क्यों वो भी बच्चो को सिखाते नहीं हैं अपनी मातृ भाषा।
      भाषा कोई भी हो हर भाषा को उतनी ही इज़्ज़त, सम्मान मिलना चाहिये जितना अंग्रेज़ी को मिलता है।
      बहुत बार बच्चों को देखा मैंने वो अपने झुंड में भी सिर्फ अंग्रेज़ी का प्रयोग करते है। क्या ये सही है?
बच्चा माँ की कोख से ही भाषा सीख कर आता नहीं उसको सिखाना पड़ता है तभी तो वो सीखेगा। अगर माँ बाप ने ठान लिया कि अपने बच्चे को अंग्रेज़ी के साथ अपनी मातृ और राष्ट्र भाषा भी सिखायेंगे तो बच्चों को कम से कम तीन भाषाओं का ज्ञान होगा।
क्यों ना सारे भाषाओं को एक समान किया जाए?

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