Thursday, 6 July 2017

वो

उसके सम्मान की बातें सभी करते है
मगर इज़्ज़त कोई करता नहीं

उसकी गरिमा को ठेस पहुँचने पर गुस्सा सब को आता है
मगर फ़र्क किसी को पड़ता नहीं

जब हुआ द्रौपदी का अपमान भारी सभा में,
पांडव विवश थे और आज व्यवस्थाएं विवश है

जब उसके जिस्म को चीरते है,
लोग आवाज़ उठाते है,
रैली करते है,
फिर भूल जाते है

अत्याचार वो सहती है,
ताने उसको सौगात में मिलते है,
तोहफ़ा उसको बेइज़्ज़ती का दिया जाता है
इल्ज़ाम लगाया जाता है उस पर,
सब सिर्फ़ बोलते है,
बातें करते है थोड़े दिनों बाद भूल जाते है
मगर उसका क्या?
वो किसको दोष दे?
किसको ज़िम्मेदार ठहराए?
किसके सामने भीख माँगे शांती का?
आख़िर क्यों कठोर हो जाता है दिल सबका जब बात इंसाफ की लड़ाई की आती है?

है कोई जवाब??।

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